शनिवार, 30 मार्च 2019

गरुण पुराण तेरह अध्याय की कथा,सुनिये सपिण्डन की विधि तथा सूतक का निर्णय

गरुण पुराण तेरह अध्याय की कथा, सुनिये सपिण्डन की विधि तथा सूतक का निर्णय शैय्या दान सामग्री एवं महिमा by Pandit Pradeep Pandey 9871030464  https://youtu.be/a0sCptt66Lc

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#गरुड़ #उवाच

#गरुड़जी ने कहा – हे #प्रभो! #सपिण्डन की #विधि, #सूतक का निर्णय और #शय्यादान तथा #पददान की सामग्री एवं उनकी #महिमा के #विषय में कहिए।

 #श्रीभगवानुवाच

#श्रीभगवान ने कहा – हे तार्क्ष्य! #सपिण्डीकरण आदि सम्पूर्ण #क्रियाओं के विषय में बतलाता हूँ, जिसके द्वारा #मृत प्राणी प्रे#त नाम को छोड़कर #पितृगण में प्रवेश करता है, उसे सुनो। जिनका पिण्ड #रुद्रस्वरुप पितामह आदि के #पिण्डों में नहीं मिला दिया जाता, उनकों #पुत्रों के द्वारा दिये गये अनेक प्रकार के #दान प्राप्त नहीं होते। उनका पुत्र भी सदा #अशुद्ध रहता है कभी शुद्ध नहीं होता क्योंकि #सपिण्डीकरण के बिना सूतक की #निवृत्ति अर्थात समाप्ति नहीं होती। इसलिए #पुत्र के द्वारा सूतक के अन्त में #सपिण्डन किया जाना चाहिए।

मैं सभी के लिए #सूतकान्त का यथोचित काल कहूँगा। #ब्राह्मण दस दिन में, #क्षत्रिय बारह दिन में, #वैश्य पन्द्रह दिन और #शूद्र एक मास में शुद्ध होता है। प्रेत संबंधी #सूतक में #सपिण्डी दस दिन में #शुद्ध होते हैं। #सकुल्या (कुल के लोग) तीन #रात में शुद्ध होते हैं और #गोत्रज स्नान मात्र से शुद्ध हो जाते हैं। चौथी #पीढ़ी तक के #बान्धव दस रात में, पाँचवीं #पीढ़ी के लोग छ: रात में, #छठी पीढ़ी के चार दिन में और #सातवीं पीढ़ी के तीन दिन में, #आठवीं पीढ़ी के एक दिन में, नवीं #पीढ़ी के दो प्रहर में तथा #दसवीं पीढ़ी के लोग स्नान मात्र से #मरणाशौच और #जननाशौच से शुद्ध हो जाते हैं।

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